Wednesday, January 22, 2014

रमता जी स्मृति दिवस, 24 जनवरी 2014



क्रांतिकारी स्वाधीनता सेनानी जनकवि रमता जी के सुराज के सपनों को साकार करें

संकल्प सभा

24 जनवरी 2014, 11 बजे दिन, महुली घाट

वक्ता: का. स्वदेश भट्टाचार्य, रामनिहाल गुंजन, जितेंद्र कुमार, सुधीर सुमन

गायन: राजू रंजन




अइसन गांव बना दे, जहां अत्याचार ना रहे 

जहां सपनों में जालिम जमींदार ना रहे

सबके मिले भर पेट दाना, सब के रहे के ठेकाना

कोई बस्तर बिना लंगटे-उघार ना रहे

सभे करे मिल-जुल काम, पावे पूरा श्रम के दाम

कोई केहू के कमाई लूटनिहार ना रहे

सभे करे सब के मान, गावे एकता के गान

कोई केहू के कुबोली बोलनिहार ना रहे
                                           - रमाकांत द्विवेदी रमता




बंधुओ,

30 अक्टूबर 1917 में भोजपुर जिले के बड़हरा प्रखंड के महुली घाट में जन्मे रमाकांत द्विवेदी रमता जी ने आजीवन राजनैतिक आजादी, सामाजिक-आर्थिक बराबरी और सुराज के लिए संघर्ष किया। 1932 में वे नमक सत्याग्रह के दौरान पहली बार जेल गए। लेकिन जल्द ही गांधीवादी आंदोलन से उनका मोहभंग हो गया। 1941 में ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें फिर जेल में डाल दिया। जुलाई 1941 में उन्होंने ऐलान किया कि ‘क्रांतिपथ पर जा रहा हूँ/ धैर्य की कडि़यां खटाखट तोड़कर मैं आ रहा हूं।’ 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सचमुच युवकों ने धैर्य की कडि़यां तोड़ डालीं। रमता जी उस आंदोलन की अगली कतार में थे। 1943 में उनकी पुनः गिरफ्तारी हुई और उन्हें यातना भी दी गई। 1943 में ही उन्होंने भविष्य के अपने रास्ते का संकेत दे दिया- ‘रूढि़वाद का घोर विरोधी, परिपाटी का नाशक हूं/ नई रोशनी का प्रेमी, विप्लव का विकट उपासक हूं/......मैं तो चला आज, जिस पथ पर भगत गए, आजाद गए/ खुदीराम-सुखदेव-राजगुरु-बिस्मिल रामप्रसाद गए।’

1947 की आजादी और उसके बाद के राजकाज से वे जरा भी संतुष्ट नहीं रहे। उन्होंने अपने एक भोजपुरी गीत में लिखा कि ‘हम त शुरूए में कहलीं कि सुलहा सुराज ई कुराज हो गइल/ रहे जेकरा प आशा-भरोसा उ नेता दगाबाज हो गइल।’ इसके बाद लगातार वामपंथी राजनीति में उनकी दिलचस्पी बढ़ती गई। पहले वे सीपीएम में गए। उसके थोड़े दिनों के बाद ही उनका भाकपा-माले से जुड़ाव हुआ। इसके बाद वे 24 जनवरी 2008 को अपने निधन तक आजीवन इस पार्टी द्वारा संचालित आंदोलनों के साथ रहे। बिहार राज्य जनवादी देशभक्त मोर्चा और आईपीएफ के गठन में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। वे आईपीएफ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे।

रमता जी ने जनता की मुक्ति के गीत लिखे। जनता की राजनैतिक समझदारी को बढ़ाने और उसकी एकता को मजबूत करना उनका मकसद रहा। एक गीत में उन्होंने लिखा- ‘सौ में पंचानबे लोग दुख भोगता/सौ में पांचे सब जिनिगी के सुख भोगता/ओही पांचे के हक में पुलिस-फौज बा/दिल्ली-पटना से हाकिम-हुकुम होखता/ओही पांचे के चलती बा एह राज में/ऊहे सबके तरक्की के राह रोकता।’’ आज जबकि विकास और तरक्की का बढ़चढ़कर दावे करने वाली सरकारें और शासकवर्गीय पार्टियां वास्तव में किसान और मजदूर जनता के जीवन के विनाश में लगी हुई हैं, तब दुख भोगने वाली पंचानबे प्रतिशत जनता की राजनैतिक एकजुटता ही रमता जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है। आजादी की पहली लड़ाई के योद्धा कुंवर सिंह पर लिखे गए एक गीत में रमता जी ने लिखा था कि ‘देश जागेला त दुनिया में हाला हो जाला/ कंपनी का, पार्लमेंट के दीवाला हो जाला।’ आज जबकि पूरे देश को कारपोरेट कंपनियों का चारागाह बना दिया गया है, सरकारें जानबूझकर खेती और किसानी की गहरी उपेक्षा कर रही हैं, लाखों किसान आत्महत्याएं कर चुके हैं, जब खेती को पूरी तरह पूंजीपतियों के हवाले कर देने की साजिश की जा रही है, नौजवान अपने गांव-घर से रोजगार के लिए पलायन करने को मजबूर हैं, गांवों में शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार और अन्य बुनियादी सुविधाओं की हालत बदतर है, जब पार्लियामेंट में सांसद कारपोरेट कंपनियों के एजेंट की तरह काम कर रहे हैं और वहां जनविरोधी नीतियां बन रही हैं, तब नए सिरे से सुराज और आजादी की उस लड़ाई को आगे बढ़ाने की जरूरत है, जिसका रास्ता रमता जी हमें दिखा गए हैं। आइए उनके स्मृति दिवस पर हम अपने गांव समाज को जगाने, जनविरोधी राज को बदलने तथा असली आजादी और सुराज की उनकी लड़ाई को आगे बढ़ाने का संकल्प लें। यह उन्हीं की पुकार है- काहे फरेके-फरके बानीं, रउरो आईं जी/ हमार सुनीं, कुछ अपनो सुनाईं जी।’ 
(रमता जी के स्मृति दिवस पर आयोजित कार्यक्रम का पर्चा  )



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